२६ जून, २०१०

दोन शेर

मैने तो यूं ही रेत पर फेरी थी उंगलीयां
देखा जो गौर से तेरी तस्वीर बन गयी
दिल उनसे गुफ्तगू के लिये बेकरार है
या रब तु जान डाल दे तस्वीर-ए-यार में
सुना है मेरी तस्वीर के टुकडे उसने
घर में ही छिपा रखें है - बाहर नही फेंके

कभी खामोशी भी कुछ कह जाती है
तड़पने के लिए सिर्फ़ यादें रह जाती है
क्या फर्क पड़ता है दिल हो या कोयला
जलने के बाद सिर्फ़ राख ही रह जाती है

शायर - __________________

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा