२३ जून, २०१०

योगीयों का लिबास लगते है

योगीयों का लिबास लगते है,
लोग कितने उदास लगते हैं
दर्द की ओस में धुले चेहरे
मकबरों पर की घास लगते है
सुबह का सूरज किधर निकलेगा
मैकदे में कयास लगते है
आप भी जिंदगी से अजिज है
आप भी देवदास लगते है
हाय, पलके लहुलुहान हुयी
ख्वाब टुटे गिलास लगते है
आप उस शख्स तक नहीं पहुंचे
हां, मगर आसपास लगते है
जिस्म आंधी है आरजूओं की
लोग उडती कपास लगते है
पास में आईने नहीं रखते
सुख सभी सूरदास लगते है
कत्ल करके किसीका भागे हो
लोग यूं बदहवाश लगते है
योगीयों का लिबास लगते है,
लोक कितने उदास लगते हैं
- अनामिक

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