मुझपे भी रहम मेरे मेहरबान किजीए, ए मेहेरबान किजीए
मुश्किल हमारे दिल की भी आसान किजीए जरा आसान किजीए
गुलशन में चल रही है बहारों की छेडछाड, मैदान-ए-मोहब्बत में निकल आये शयसवार
तीर-ए-नजर का हम को भी कर लिजीए शिकार
हम तो है सिर्फ आप के...ऐलान किजीये जरा...ऐलान किजीये...
बेहोश दिल को दर्द के औसान बक्षिये, सोयी हुयी मौज को एक तुफान बक्षिये...
जीने के वास्ते कोई अरमान बक्षिये, वर्ना हमारी मौत का सामान किजीए, मौत का सामान किजीए
हे मराठे मध्येच तलवारी घेऊन तंबूत घुसले न पार बोर्या वाजला कव्वालीचा...
जरा कव्वाली पूर्ण होईपर्यंत दम निघत नव्हता का यांना...छे!!!
superb.. nusrat fateh alikhan..
उत्तर द्याहटवा